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इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या / मीर तक़ी 'मीर'
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इब्तिदा-ए-इश्क़<ref>प्रेमारंभ</ref> है रोता है क्या
आगे-आगे देखिये होता है क्या
क़ाफ़िले में सुबह के इक शोर है
यानी ग़ाफ़िल<ref>अनभिज्ञ</ref> हम चले सोता है क्या
सब्ज़<ref>हरी</ref> होती ही नहीं ये सरज़मीं
तुख़्मे-ख़्वाहिश<ref>इच्छाओं के बीज</ref> दिल में तू बोता है क्या
ये निशान-ऐ-इश्क़ हैं जाते नहीं
दाग़ छाती के अबस<ref>बिन प्रयोजन</ref> धोता है क्या
ग़ैरते-युसूफ़ है ये वक़्त ऐ अजीज़
'मीर' इस को रायेग़ाँ<ref>व्यर्थ</ref> खोता है क्या
शब्दार्थ
<references/>