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इमरोज के बहाने प्रेम / राकेश पाठक
Kavita Kosh से
सड़कों पर बातें भी चलती है उतनी ही तेज निगाहों की तरह
जिसके गॉसिप में मेरे और उसके संबंधों की जवानी की बातें थी
उरोज और इमरोज़ के बीच सड़कें भी जवां रही
जब जब भी बातें उठी इमरोज ने एक पेंटिंग बनाई
एक दूसरे से गुथे हुए प्रेमी जोड़ों की
रत और लिप्त पत्थर में उकेरी गई उन भंगिमाओं की
हर एक पेंटिंग एक जबाब था उन उन्मादियों को
जिन्होंने इमरोज के प्रेम से इतर कई बातें की थी
एक प्रीतो के लिए इमरोज सिर्फ प्रेम से अलग कुछ नही था
कुछ शब्द लिखे प्रीतो ने
उसी इमरोज़ के लिए
जिसकी खूब बाते राहों में उड़ायी जा रही थी
ये दो रूह थे आदिम और हौआ की
सिरी और फरहाद की
इन दोनों में ये ही रूह में अवतरित थे !