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इम्तहान में होली / उषा यादव

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होली, तुमसे यही शिकायत
करते बच्चे हम।
इम्तहान के दिनों दौड़कर
आती क्यों छम-छम?

माँ कहतीं बस बहुत हो गया,
अब रख दो पिचकारी।
यदि बुखार आ गया कहीं
तो होगी मुश्किल भारी।
पर अपना मन रमे रंग में
क्या ज्यादा, क्या कम!
इम्तहान के दिनों दौड़कर
आती क्यों छम-छम?

गुब्बारे पानी वाले भी
हमको बहुत लुभाएँ।
सबके ऊपर उन्हें फेंककर
हम बच्चे हर्षाएँ।
लेकिन नल के पास पहुँचते
पड़े दाँत क्या कम!
इम्तहान के दिनों दौड़कर
आती क्यों छम-छम?

इम्तहान का भूत, पर्व का
मजा बिगाड़े आधा।
और उधर ढोलक की थापें
दें पढ़ने में बाधा।
खी-खी करके तुम हँसती हो
कुछ तो करो शरम!
इम्तहान के दिनों दौड़कर
आती क्यों छम-छम?

किसने सीख तुम्हें दी गंदी
इन्हीं दिनों आने की।
हम बच्चों के मौज-मजे को
फीका कर जाने की।
हल्ला-गुल्ला, धूम-धड़ाका
करें खूब फिर हम।
इम्तहान के बाद अगर
तुम आओ छम-छम-छम।