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इराक / कुमार मुकुल

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जाने कब

आँखें होंगी ज्योतिहीन

और पोरों से छू-छूकर

बताया करूंगा चेहरे

बारूदी हैं या तेज़ाब धुले


कब

दूर-दूर बैठी गिद्धों की जमात

इतने पास आ सकेगी

कि खा सकेगी

और टटोल-टटोल जान सकूंगा मैं

उनकी गरदन उनकी चोंच

और भर सकूंगा भीतर

तोतली वास वसंत की।