भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है / ज़फ़र गोरखपुरी
Kavita Kosh से
इरादा हो अटल तो मोजज़ा<ref>चमत्कार</ref> ऐसा भी होता है
दिए को ज़िंदा रखती है हव़ा, ऐसा भी होता है
उदासी गीत गाती है मज़े लेती है वीरानी
हमारे घर में साहब रतजगा ऐसा भी होता है
अजब है रब्त की दुनिया ख़बर के दायरे में है
नहीं मिलता कभी अपना पता ऐसा भी होता है
किसी मासूम बच्चे के तबस्सुम<ref>मुस्कुराहट</ref> में उतर जाओ
तो शायद ये समझ पाओ, ख़ुदा ऐसा भी होता है
ज़बां पर आ गए छाले मगर ये तो खुला हम पर
बहुत मीठे फलों का ज़ायक़ा ऐसा भी होता है
तुम्हारे ही तसव्वुर<ref> कल्पना</ref> की किसी सरशार मंज़िल में
तुम्हारा साथ लगता है बुरा, ऐसा भी होता है
शब्दार्थ
<references/>