भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इरोम शर्मिला के नाम एक भारतीय ओलिंपियन का पत्र / कुमार विक्रम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इरोम शर्मिला!
बहुत जल्द तुमसे भी मांगेंगे वो हिसाब
तुम्हारे १६ वर्षों के
तप-उपवास-संघर्ष-पीड़ा-समर्पण-यातना का प्रतिफल
क्या तुम्हे ओलिंपिक में स्वर्ण मिला?
क्या आफ्स्पा हटा?
क्या दमन घटा?
क्या किसी नए सूरज, नयी रौशनी के साथ
कोई नई पौ फटी?
या फिर तुम भी हमारी ही तरह
देश दुनिया के अखबारों में, टीवी चैनलों में
अपने फोटो छपवाने में ही व्यस्त रही
जबकि देश के करदाता
हर पल हर दिन तुम्हारी सफलता के लिए
प्रयत्नरत रहे, लगभग, त्रस्त रहे?

इरोम शर्मिला!
हो सकता है
तुम्हे भी मेरी ही तरह
कुछ बहाने बनाने पड़े
कैसे जहाँ जल्द से जल्द
रातो-रात सारे ऐशो-आराम पा लेने का जुनून हो
कर देकर ही अपने सारे दायित्त्वों से
मुक्त हो जाने का क़ानून हो
वहाँ मैंने लक्ष्य रखा
सबसे लम्बे रास्ते पर चलने का
जैसे तुमने अपने शरीर को स्थिर कर
मन को अडिग रखा
और लाइकोट पहाड़ियों का लघुरूप बन गयी
शायद शरीर को कुछ और गति प्रदान कर
मेरे अंदर भी अनवरत बरसों से
कुछ वैसी ही अडिगता रही
शायद दोनों ही लाँघना चाहते थे सीमायें
शरीर की और मन की संकीर्णताओं की

इरोम शर्मिला!
किसे दिलचस्पी है
मानवीय संघर्षों की बारीकियों में
खून और पसीने की बदबुओं में
तिल-तिल कर गुमनाम गलियों में
अपने आँखों की चमक को
सहेज कर रखने वालों के जद्दोजहद में
एक थोड़ी-सी अच्छी
थोड़े से गैर-मामूली सपनो के सफल करने के
अनगिनत असफल प्रयासों में
खेल के मैदान से हो कर गुजरने वाले
खूससूरत और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में
हम तो दरअसल उन तमाशों की तरह हैं
जिसके अंत में मनुष्य मरे या सांड
दोनों ही स्थितियों में मनोरंजन भरपूर होता है.

दोआबा, 2016
 
(9 अगस्त 2016 को मणिपुर की मानवाधिकार नेता इरोम शर्मिला ने आफ्स्पा के खिलाफ अपने 16 वर्षो से अनवरत चले आ रहे अनशन को तोड़ने का निर्णय लिया और उसी दिन एक सोशलाइट लेखिका ने भारत के रियो ओलंपिक्स में निराशाजनक प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को दोषी ठहराते हुए उनपर सिर्फ मौज-मस्ती के लिए इन स्पर्धाओं में भाग लेने का आरोप लगाया)