इलियास धनियावाला उर्फ़ –- सुदामा / राजेश्वर वशिष्ठ
नैमिषारण्य की निराशा बटोरे
सड़क के किनारे रुके हैं हम
पीली सरसों को आँख भर निहारने के लिए!
सीपी कहते हैं –- चलो चलते हैं
यहीं इस पतली सड़क से भीतर जाकर
सुदामा-चरित वाले
महाकवि नरोत्तम दास जी का स्थान है
बाड़ी गाँव में !
आँखों के सामने तैर जाता है
एक दीन-हीन, कंगाल ब्राह्मण
जिसने बगल में दबाई है
चावलों की छोटी-सी पोटली
और द्वारका नगरी के महल अट्टालिकाओं में
खोज रहा है अपने गुरु भाई कृष्ण को !
मुझे याद आती हैं वर्षों पहले पढ़ीं
सुदामा चरित की कुछ पंक्तियाँ --
सीस पगा न झँगा तन में,
प्रभु ! जानै को आहि बसे केहि ग्रामा
धोती फटी-सी लटी-दुपटी अरु,
पांय उपानह की नहिं सामा
द्वार खरो द्विज दुर्बल एक,
रह्यो चकि सो बसुधा अभिरामा
पूछत दीन दयाल को धाम,
बतावत अपनो नाम सुदामा ।
जब कथा क्रम में कृष्ण आँसुओं से
धोते हैं सुदामा के पाँव
बचपन में विह्वल हो कर
रो लिया करता था मैं भी !
थोड़े से भटकाव,
पतली और टेढ़ी-मेढ़ी सड़क से होकर
हम पहुँचते हैं बाड़ी ग्राम में कवि के घर !
विशाल आँगन है
जिसमें बनी हैं दो तीन कोठरियाँ
एक दालाननुमा कमरे में लगी है
कवि की प्रतिमा
हिन्दी सभा सीतापुर की विज्ञप्ति के साथ
कि 30 नवम्बर, 1953 को
इस स्मारक का उद्घाटन किया
आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने
बस इतने ही नरोत्तम दास बचे हैं
इस जीर्ण-शीर्ण स्मारक में !
आस-पास कोई व्यक्ति नहीं है
पीछे तालाब की ओर झाँकते हुए
हमें मिलता है इलियास
एक पतला-दुबला लड़का जिसके हाथों में है
बिलकुल ताज़ा महकता हुआ धनिया !
सीपी पूछते हैं -– यहीं रहते हो भय्ये?
कवि नरोत्तमदास से परिचित हो?
थोड़ा लजाता है इलियास, बताता है
बस नाम सुने हैं साहेब, हम तो अनपढ़ हैं
पीछे धनिया तोड़ने गए थे !
आप कैसे आए हैं बाबू साहेब?
मैं धीरे से कहता हूँ, कवि को खोजने.....
इलियास हैरान होकर
आसमान की तरफ देखने लगता है,
फिर कहता है -- यहाँ एक बाबाजी रहते हैं
जिन्होंने पेट भरने के लिए
हनुमान जी सहित कई देवताओं को
तैनात कर लिया है इस कवि-स्थली पर
फिर भी भूखे ही रह जाते हैं
आज भाग्य से कहीं जीमने गए होंगे !
हम चमत्कृत हो जाते हैं इलियास की बुद्धि पर
उसे अपने साथ बिठा कर लेते हैं कई सारे चित्र
इलियास चकित और अभिभूत हो जाता है
उसके धनिए की गन्ध हमें याद दिलाती है
अन्नपूर्णा की रसोई !
इलियास हमें विदा करते हुए
हमारी ओर बढाता है
हरे धनिए का एक बड़ा सा गुच्छा
जिसे हम नहीं-नहीं कहते हुए भी
सँभाल कर रख लेते हैं अपनी कार में !
कवि नरोत्तमदास नहीं मिलते
हमें अपने घर में
फिर भी हमें
रह-रह कर याद आता है सुदामा चरित्र
बस अब सुदामा का स्थान
इलियास ने ले लिया है,
जो चलते हुए कहता है
साहब, मेरा नाम इलियास धनियावाला नहीं
इलियास बिजलीवाला है,
कोई काम हो तो ज़रूर बताना
बाड़ी गाँव में सब जानते हैं मुझे !
इलियास हाथ हिला रहा था
और हम कवि-द्वार से निकल चुके थे ।
हम सुदामा से मिल कर लौट रहे थे !