इल्ज़ामात से पीछे बंधी कलाई क्यों? / सूरज राय 'सूरज'
इल्ज़ामात से पीछे बंधी कलाई क्यों?
इतनी घातक होती है अच्छाई क्यों?
सही मेरा ले लेता कोरे काग़ज़ पे
कोशिश मेरे क़त्ल की मेरे भाई क्यों?
एक समन्दर पूछ रहा तैराकों से
आँसू में मुझसे ज़्यादा गहराई क्यों?
तू आइना कहता है मुझको अपना
फिर भी तेरी झूठी करूँ बड़ाई, क्यों?
एक लुढ़कते पत्थर ने पूछा मुझसे
झुक कर नापी जाती है ऊँचाई क्यों?
आओ दरारें ज़ेह्मों की भर लें वरना
बेवजह दिल में बन जाये खाई क्यों?
आज तो रोटी लाने वाली थी शायद
माँ तू ये रस्सी के टुकड़े लाई क्यों?
दुनिया भर के लफ़्ज़ करें जिसको सजदा
ऐसे प्रेम के हक़ में अक्षर ढाई क्यों?
लाशें भी ज़िंदा लाशें भी क़फ़न नहीं
मंहगाई है पर इतनी मंहगाई क्यों?
न ज़र न औक़ात न ताक़त न शोहरत
फिर ऐसे मज़लूमों की सुनवाई क्यों?
दुनिया भर की नज़रें तुझ पर हैं टेढ़ी
खुल्लम खुल्ला बोल रहा सच्चाई क्यों?
आगज़नी के जुर्म में जुगनू को फाँसी
मुजरिम तो "सूरज" है उसे रिहाई क्यों?