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इल्म के नाम पर मैं धब्बा हूँ / देवी नांगरानी

इल्म के नाम पर मैं धब्बा हूँ
छाप लो मुझको मैं अंगूठा हूँ

मैं पुराना हूँ इसलिये शायद
हर नये मोड़ पर अटकता हूँ

मैं तो झूठा गवाह हूँ यारो
झूठ को भी मैं कैश करता हूँ

अस्ल और सूद मुझको ले डूबे
सर से मैं पाँव तक ही डूबा हूँ

तन का कैदी, ग़ुलाम मन का मैं
ख़्वाहिशों से न अब भी छूटा हूँ

लोग कहते हैं धोख़ेबाज़ मुझे
झूठ पर सच का मैं मुलम्मा हूँ

दिन वो पहले से हैं कहाँ ‘देवी’
देखती मैं तो उनका सपना हूँ