भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इल्म के नाम पर मैं धब्बा हूँ / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
इल्म के नाम पर मैं धब्बा हूँ
छाप लो मुझको मैं अंगूठा हूँ
मैं पुराना हूँ इसलिये शायद
हर नये मोड़ पर अटकता हूँ
मैं तो झूठा गवाह हूँ यारो
झूठ को भी मैं कैश करता हूँ
अस्ल और सूद मुझको ले डूबे
सर से मैं पाँव तक ही डूबा हूँ
तन का कैदी, ग़ुलाम मन का मैं
ख़्वाहिशों से न अब भी छूटा हूँ
लोग कहते हैं धोख़ेबाज़ मुझे
झूठ पर सच का मैं मुलम्मा हूँ
दिन वो पहले से हैं कहाँ ‘देवी’
देखती मैं तो उनका सपना हूँ