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इवमचा सिंह / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

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सन 95 में, दिल्ली की ठण्ड में साहित्य अकादेमी के कविता पाठ में
इवमचा सिंह ने पाखी की तरह कहा था :
आइए हमारे देश, मणिपुर के मेराँग में ।

मेराँग — कितना अपूर्व नाम, किसने रखा था ?
कुछ ही दूरी पर एशिया की सबसे सुन्दर वही झील — लोकटाक
शिशु की माड़ी की तरह रँग । शिशु की माड़ी से
अधिक सुन्दर इस पृथ्वी पर और कुछ नहीं ।

आधी रात में उसी मणिपुर से फ़ोन : इवमचा सिंह
मैंने कहा, क्या हो रहा है आपके यहाँ ?

क्या हो रहा है ? क्या हो रहा है आपको नहीं पता ?
यदि कल आसाम राइफ़ल्स आप लोगों के
जोड़ासाँकू ठाकुरबाड़ी में घुस जाय
रविन्द्रनाथ के सामने खड़े हो हस्तमैथुन करे तो ?
कैसा लगेगा आप लोगों को ?
यदि कल गड़िया हाट रोड पर
मास्टर साहब को छात्रों के सामने नँगाकर
उठक-बैठक कराए तो ? कैसा लगेगा ?
यदि कल आपके शँख घोष की लड़की को
उठा ले जाए ? कैसा लगेगा ?

इवमचा सिंह रो रहे थे

अवाक होकर बैठा हूँ मैं
उसने क्या मणिपुर से फ़ोन किया था ?
या कि भारतवर्ष के बाहर से ?
लोकटाक झील के चारो तरफ उठ आए हैं नौ पहाड़ ।

उसी नौ पहाड़ के बीच से होकर
चल रहा है आसाम राइफ़ल्स का ट्रक
वे लोग ही मनोरमा को उठा ले गए हैं ?

सच में इवमचा सिंह ने फ़ोन किया था क्या ?
या फिर किसी और ने
उसकी लड़की छह में पढ़ती है, स्कूल नहीं जा पाती
अगर नहीं लौटी तो ?
यह कैसे हो सकता है, हमारा तो एक ही संविधान है
किसने दूसरा लिख छोड़ा है ?

मिलिट्री के जरिए घुसाया जा सकता है
देश नहीं चलाया जा सकता
यह मिलिट्री भी जानती है
और आप लोग नहीं जानते ?

मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर