इशक दी नविओं नवीं बहार / बुल्ले शाह
इशक दी नविओं नवीं बहार।
फूक मुसल्ला भन्न<ref>तोड़</ref> सिट्ट लोटा,
ना फड़ तसबी कासा सोटा,
आलिम कैंहदा दे दे होका,
तर्क हलालों खाह मुरदार।
इशक दी नविओं नवीं बहार।
उमर गवाई विच्च मसीती,
अन्दर भरिआ नाल पलीती,
कदे नमाज़ वहादत ना कीती
हुण क्यों करना ऐं धाड़ो-धाड़।
इशक दी नविओं नवीं बहार।
जाँ मैं सबक इशक दा पढ़िआ<ref>पढ़ा</ref>,
मस्जिद कोलों जीऊड़ा<ref>जीव</ref> डरिआ<ref>डरा</ref>,
भज्ज-भज्ज ठाकुर दुआरे वड़िआ<ref>प्रविष्ट हुआ</ref>,
घर विच्च पाया महिरम यार।
इशक दी नविओं नवीं बहार।
जाँ मैं रमज़<ref>भेद</ref> इशक दी पाई,
मैनूँ तूती<ref>मैं और तू की भावना, द्वेत भाव</ref> मार गवाई,
अन्दर बाहर होई सफाई,
जित वल्ल वेखाँ यारो यार।
इशक दी नविओं नवीं बहार।
हीर राँझण दे हो गए मेले,
भुल्ली हीर ढुँढेंदी मेले,
राँझण यार बगल विच्च खेले,
मैनूँ सुध बुध रहीना सार।
इशक दी नविओं नवीं बहार।
वेद कुरानाँ पढ़-पढ़ थक्के,
सिजदे करदिआँ घस गए मत्थे,
ना रब्ब तीरथ ना रब्ब मक्के,
जिन पाया तिन नूर अनवार<ref>जलवा</ref>।
इशक दी नविओं नवीं बहार।
इशक भुलाया सिजदा तेरा,
हुण क्यों ऐवें पावें झेड़ा,
बुल्ला हो रहो चुप्प चुपेड़ा,
चुक्की सगली कूक पुकार।
इशक दी नविओं नवीं बहार।