भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इशरत गह ए जहां में तमाशा है चार सू / निर्मल 'नदीम'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इशरत गह ए जहां में तमाशा है चार सू,
यानी फ़रेब ए दश्त ए तमन्ना है चार सू।

नक़्श ओ निगार ए वहशत ए दिलगीर के सिवा,
दामान ए गुल फ़रोश में और क्या है चार सू।

सैर ओ तवाफ़ ए गौहर ए रंज ओ अलम करो,
हद्द ए नज़र में इश्क़ की दुनिया है चार सू।

सुनकर बयान ए बाद ए सबा हो गया यक़ीन,
तेरी ज़बान ए शीरीं का चर्चा है चार सू।

इक बहर ए तीरगी के सिवा क्या थी कायनात,
अब तो तेरी अदाओं का जलवा है चार सू।

औराक़ आसमां के भी देखे हैं खोल कर,
हम दोनों ही के इश्क़ का क़िस्सा है चार सू।

इक दिन खिलेगा बन के गुल ए इन्क़िलाब ए इश्क़,
मेरा लहू ज़मीन पे बिखरा है चार सू।

सूरज भी जिसकी ताब से थर्रा के हट गया,
वो बर्क़ ज़ेर ए हस्ती ए अशिया है चार सू।

है मरकज़ ए नशात ए दो आलम नदीम जी,
बच्चों ने मेरे नक़्शा वो खींचा है चार सू।