भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इशारा / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
मुझको हौले से समझा रही है,
एक आवाज़ सी आ रही है।
रात ने लिख लिए जब नए ख़्वाब
फिर, तेरी याद क्यों आ रही है ?
दिन गया, शब गई, मुझको सोना है फिर,
तेरी तस्वीर क्यों गा रही है ?
नई राह तय की थी मैंने वो फिर,
तेरे नज़दीक क्यों जा रही है ?
और सूरज ने क्यों ये कहा चांद से,
रोशनी क्यों वहां जा रही है ?
जहां से इशारों में रह-रह के तू,
फिर मुझको बहका रही है।
चांद क्यों चुप रहा, मैंने क्या कह दिया,
चांदनी अपने घर जा रही है।