भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इशारा / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुझको हौले से समझा रही है,
एक आवाज़ सी आ रही है।

रात ने लिख लिए जब नए ख़्वाब
फिर, तेरी याद क्यों आ रही है ?

दिन गया, शब गई, मुझको सोना है फिर,
तेरी तस्वीर क्यों गा रही है ?

नई राह तय की थी मैंने वो फिर,
तेरे नज़दीक क्यों जा रही है ?

और सूरज ने क्यों ये कहा चांद से,
रोशनी क्यों वहां जा रही है ?

जहां से इशारों में रह-रह के तू,
फिर मुझको बहका रही है।

चांद क्यों चुप रहा, मैंने क्या कह दिया,
चांदनी अपने घर जा रही है।