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इश्क़, रस्मों के मुक़ाबिल आया क्या? / फ़रीद क़मर
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इश्क़, रस्मों के मुक़ाबिल आया क्या?
आईना, पत्थर से फिर टकराया क्या?
ज़ुल्मतों से हारा फिर सूरज कोई
आसमाँ ने फिर लहू छलकाया क्या?
सुन के जिसको रात भर रोती रही
शम्मा से परवाने ने फरमाया क्या?
मैं रिवाजों से बग़ावत कर तो दूं
लेकिन ऐसा कर के किसने पाया क्या?
ज़िन्दगी ने आज़माया बारहा
हादसों से मैं कभी घबराया क्या?
आसमाँ चुप है, फ़ज़ा सहमी हुई
फिर छिना सर से किसी के साया क्या?