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इश्क़ की शरह-ए-मुख़्तसर के लिए / 'रविश' सिद्दीक़ी

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इश्क़ की शरह-ए-मुख़्तसर के लिए
सिल गए होंट उम्र भर के लिए

ज़िंदगी दर्द-ए-दिल से कतरा कर
दर्द-ए-सर बन गई बशर के लिए

दिल अज़ल से है शोला पैराहन
शम्अ जलती है रात भर के लिए

उस ने दिल तोड़ कर किया इरशाद
अब तसल्ली है उम्र भर के लिए

अब्र-ए-रहमत है इश्क़ का दामन
आतिश-ए-रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर के लिए

हम भी कू-ए-बुताँ को जाते हैं
ऐ सबा क़स्द है किधर के लिए

वो तजल्ली है मुंतज़िर अब तक
किसी शाइस्ता-ए-नज़र के लिए

ख़ून-ए-दिल सर्फ़ कर रहा हूँ ‘रविश’
ख़ूब से नक़्श-ए-ख़ूब-तर के लिए