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इश्क़ के दर्मियान देखो...सोचो तुम / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

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इश्क के दरमियान देखो तुम
रूह किस राह से गुज़रती है
उम्र किस चाह से गुज़रती है
आँख किस आह से गुज़रती है

एक दुनिया है बड़ी अंधी-सी
जिंदगी तेज़ बहती रहती है
तड़प रही है नोक नेजे की
प्यार चुपचाप दर्द सहता है
लहूलुहान-सा दीखता है जिस्म मगर
न खून का धब्बा है किसी दामन पर
न ओस की बूंदें हैं किसी आंखों में
उदास होट हैं मायूस है हर एक चेहरा
तकलीफ की धड़कन भी तेज़ लगती है
हमारा हौसला हल्का-सा सिहर उठता है

साँस भी दम न तोड़ दे आख़िर
तुम जो कंधे पर हाथ रख दो अभी
मैं जंग जीत जाऊंगा ख़ुद से
इश्क के दरमियान सोचो तुम