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इश्क़ जो ना-गहाँ नहीं होता / बिस्मिल सईदी

इश्क़ जो ना-गहाँ नहीं होता
वो कभी जावेदाँ नहीं होता

इश्क़ रखता है जिस जगह दिल को
मैं भी अक्सर वहाँ नहीं होता

मुझ पे होते हैं मेहरबाँ जब वो
ख़ुद पर अपना गुमाँ नहीं होता

इश्क़ होता है दिल का इक आलम
और दिल का बयाँ नहीं होता

मैं ने देखा है उन की महफ़िल में
कुछ ज़मान-ओ-मकाँ नहीं होता

इश्क़ होता है दिल-ब-दिल महसूस
ये फ़साना बयाँ नहीं होता