भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इश्क़ में अब भी वफ़ा मौजूद है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
इश्क़ में अब भी वफ़ा मौजूद है
दोस्ती का सिलसिला मौजूद है
क्यों करें कुर्बान कोई जानवर
बाग़ जब फल से लदा मौजूद है
खूब करना गुफ़्तगू पर सोच लो
हर जगह इक भेदिया मौजूद है
हैं अँधेरा बढ़ रहा तो क्या हुआ
घर में मिट्टी का दिया मौजूद है
चाहिये मंदिर या मस्जिद किसलिये
हर जगह जब वह खुदा मौजूद है
क्या भला होगा गले लगकर कहो
जब दिलों में फ़ासला मौजूद है
एक दिन मंजिल मिलेगी ही हमें
क्यूंकि अब तक रास्ता मौजूद है