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इश्क़ में जब हमको जीना आ गया / रतन पंडोरवी

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इश्क़ में जब हमको जीना आ गया
मौत को दांतों पसीना आ गया

ना-खुदाओं अब ख़ुदा पर छोड़ दो
मौज की ज़द में सफ़ीना आ गया

लब पे नाले हैं न आंसू आंख में
मुझ को जीने का करीना आ गया

रंग लाई कुफ़्र की तर दामनी
अब्रे-रहमत को पसीना आ गया

देखिये क्या गुल खिलाता है जुनूँ
फूल खिलने का महीना आ गया

जिद में बादल से बरसती है शराब
देख साक़ी वो महीने आ गया

इश्क़ के जोशे-तलब से हुस्न को
दिल रुबाई का करीना आ गया

आतिशे-मय की हरारत से 'रतन'
मेरी तौबा को पसीना आ गया।