भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ / मीर तक़ी 'मीर'
Kavita Kosh से
इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ
उस से आँखें लगीं तो ख़्वाब कहाँ
बेकली दिल ही की तमाशा है
बर्क़<ref>आसमानी बिजली </ref> में ऐसे इज़्तेराब<ref>तड़प </ref> कहाँ
हस्ती अपनी है बीच में पर्दा
हम न होवें तो फिर हिजाब<ref>पर्दा</ref> कहाँ
गिरिया-ए-शब से सुर्ख़ हैं आँखें
मुझ बला नोश को शराब कहाँ
इश्क़ है आशिक़ों को जलने को
ये जहन्नुम में है अज़ाब कहाँ
महव हैं इस किताबी चेहरे के
आशिक़ों को सर-ए-किताब कहाँ
इश्क़ का घर है 'मीर' से आबाद
ऐसे फिर ख़ानमाँख़राब<ref>बरबाद
</ref> कहाँ
शब्दार्थ
<references/>