भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया / ग़ालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बेदवा पाया
हाले-दिल नहीं मालूम लेकिन इस क़दर यानी
हमने बारहा ढूँढा तुमने बारहा पाया
शोरे-पन्दे-नासेह ने ज़ख्म पर नमक छिड़का
आपसे कोई पूछे, तुमने क्या मज़ा पाया