भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे
चल ये शब भी शबाब तक पहुंचे
ज़िक्र तेरा कुछ इस तरह से मिला
खुद ब खुद लब शराब तक पहुंचे
चल ये माना तू तसव्वुर है मेरा
तेरी झलक ही ख्वाब तक पहुंचे
तितलियाँ, बिजलियाँ, उड़न परियाँ
मिलीं कई तो इन्तिखाब तक पंहुचे
तू मेरे दिल को तार तार तो कर
तो ये किस्सा किताब तक पहुंचे