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इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे / मधुप मोहता
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					इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे 
चल ये शब भी शबाब तक पहुंचे
ज़िक्र तेरा कुछ इस तरह से मिला 
खुद ब खुद लब शराब तक पहुंचे 
चल ये माना तू तसव्वुर है मेरा 
तेरी झलक ही ख्वाब तक पहुंचे 
तितलियाँ, बिजलियाँ, उड़न परियाँ
मिलीं कई तो इन्तिखाब तक पंहुचे 
तू मेरे दिल को तार तार तो कर 
तो ये किस्सा किताब तक पहुंचे
	
	