इसको केवल गीत कहो मत / शिवदेव शर्मा 'पथिक'
इसको केवल गीत कहो मत, जिसमें नयन-सिन्धु लहरा है,
एक दर्द का गीत तुम्हारे सात समुन्दर से गहरा है!
विकल हृदय का रक्त गीत की उष्ण कल्पना लिये प्रवाहित,
सरल, तरल, फेनिल प्राणों में शत-शत स्नेह-प्रदीप प्रदीपित.
मोहन की मुरली में राधा के स्वर का तूफ़ान रह रहा,
तानसेन गा रहा मोम बनकर कोई पाषण- बह रहा!
मन की अल्हड़, चंचल मीरा थिरके तो विषपान, गान हो,
हे उपासने गीतकार की! -स्वर साधो, ज्योतिर्विहान हो.
गीतकार जी रहा, साँस पर वाणी का मंगल-पहरा है,
एक दर्द का गीत तुम्हारे सात समुन्दर से गहरा है!
यही दर्द के गीत बदलते रहे युगों की निर्ममतायें,
गायक अमर रहा! धरती पर प्रतिदिन जलीं करोड़ चितायें.
महानाश में उठी गीत की लहर, सृजन की बाढ़ आ गयी,
गीत-पंचमी पतझड़ के घर पर बहार के गीत गा गयी!
गाते-गाते गीतकार की उखड़ी साँस, बयार बन गयी,
जग ने तिनका कहा; -लहर पाकर उसकी पतवार बन गयी!
इसिलिये कवि संघर्षों में सृजन-गीत लेकर ठहरा है,
एक दर्द का गीत तुम्हारे सात समुन्दर से गहरा है!