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इसको लेकर ही उनको दुश्वारी है / ओंकार सिंह विवेक
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इसको लेकर ही उनको दुश्वारी है,
जनता में क्यों अब इतनी बेदारी है।
समझेंगे क्या दर्द किराएदारों का,
पास रहा जिनके बँगला सरकारी है।
कोई सुधार हुआ कब उसकी हालत में,
जनता तो बेचारी थी,बेचारी है।
नाम कमाएँगे भरपूर सियासत में,
नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
शकुनि बिछाए बैठा है चौसर देखो,
आज महाभारत की फिर तैयारी है।
औरों-सा बनकर पहचान कहाँ होती,
अपने-से हैं तो पहचान हमारी है।
दुख का ही अधिकार नहीं केवल इस पर,
जीवन में सुख की भी हिस्सेदारी है।