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इसलिए मैं लौट आया / नागेश पांडेय ‘संजय’

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पंथ वह मेरा नहीं था ,
इसलिए मैं लौट आया .
मधुमयी मधुमास भी था ,
नेह का उच्छवास था ,
प्रीति की अनुपम छटा थी ,
हर्ष की छाई घटा थी .
मोद नभ से बरसता था ,
मुक्ति को दुःख तरसता था .
थे हजारों धाम सुख के
धाम पर तेरा नहीं था .
इसलिए मैं लौट आया .


राज मुझको मिल रहा था ,
ताज मुझको मिल रहा था .
स्वर्ग चरणों में पड़ा था ,
हास कर जोड़े खड़ा था .
क्या अनोखी सम्पदा थी ,
मगर मेरी भी अदा थी ,
 रोकते थे सब , मगर
तुमने मुझे टेरा नहीं था ,
इसलिए मैं लौट आया .


क्या करूं सम्मान लेकर ?
क्या करूँ वरदान लेकर ?
किसलिए जीवन सवारूँ ?
बिन तुम्हारे क्या निहारूँ ?
सामने तो करोड़ों थे ,
तुम्हारा चेहरा नहीं था .
इसलिए मैं लौट आया.