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इसलिये लोग तुम से नाखुश हैं / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
इसलिये लोग तुम से नाखुश हैं
प्यार करना तुम्हें नहीं आता
सबकी महफ़िल सँवार सकते हो
खुद सँवरना तुम्हें नहीं आता
तुम ख्यालों में ऐसे आते हो
जैसे सागर में ज्वार आ जाये
जैसे उजड़े हुये गुलसिताँ में
इत्तफ़ाक़न बहार आ जाये
सबको अहसास ऐसा होता है
जैसे बदली अभी बरस जाये
क्या पता है कि आपकी खातिर
कोई प्यासा कहीं तरस जाये?
चाँद के मुँह पर थूकने वाले
अपना चेहरा खराब करते हैं
राहे उलफ़त में ऐसे रहज़न ही
हुस्न को बेनक़ाब करते हैं
तुमने ऐसे क़दम बढ़ाये हैं
तुम भी चाहो तो रुक नहीं सकते
यह तुम्हारी पुरानी आदत है
टूट सकते हो, झुक नहीं सकते
एक मुद्दत हुई है जानेमन
आँखों-आँखों में इन्तज़ार लिये
ऐसा जीना भी कोई जीना है
जैसे कोई जिये, जिये, न जिये