भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इससे आगे और क्या हो सकता था / हेमन्त शेष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इससे आगे और क्या हो सकता था, क्या

पूछता हूँ अपने आप से और पछताता हूँ
जवाब न देने के लिए वह यहां से जा चुकी
कमरे में पीछा करते शब्द हैं कुछ मेरे आगे
जिन्हें बोल सकता हूँ
कुछ वे जिन्हें बोल चुका

मैं तो बस इतना ही कहना चाहता था
प्रेम में
यों घटनाविहीन भी हो सकती हैं
कुछ एक शारीरिक मुलाक़ातें