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इससे पहले कि / सैयद शहरोज़ क़मर
Kavita Kosh से
इससे पहले कि धूप में
कपूर सी उड़ जाए यह दुनिया
दर्द और दर्प के अंत भेद को पहचानो
दुःख और संत्रास की जड़ें
शायद यहीं कहीं हैं
इससे पहले कि धूप में
कोई बादल बन जाए
वाष्पीकरण की प्रक्रिया जान लो
बाढ़ को किसी की पहचान
नहीं होती