भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इससे ही पहचाना जाता है एक कवि / केशव तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितने बरस से रहा रहा हूँ
इस शहर में मैं
फिर भी
अक्सर भटक ही जाता हूँ
इसकी टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में
ठीक वैसे ही जैसे एक कवि
कभी-कभी भटक जाता है
अपने बिम्बों और कथ्य के बीच

इस शहर में घूमना
कविता लिखने जैसा ही
अनुभव है मेरे लिए
जहाँ नदी और पहाड़ ही नहीं
छोटे-छोटे चाय-पान के खोखे
सड़कों पर चल रहे रिक्शे तांगे
इधर-उधर गप्प हांकते लोग
एक कविता ही रच रहे होते हैं
इसके और कविता के
अन्तर्सम्बन्धों को पहचानने में लगा
एक कवि
इससे ही पहचाना जाता है |