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इसीलिए / गगन गिल
Kavita Kosh से
वह नहीं होगा कभी भी
फाँसी पर झूलता हुआ आदमी
वारदात की ख़बरें पढ़ते हुए
सोचता था वह
गर्दन के पीछे हो रही झुरझुरी को वह
मुल्तवी करता रहता था
तमाम क़बरों के बावजूद
सोचता था
अपने लिए एक
बिल्कुल अलग अंत
इसीलिए जब अंत आया
तो अलग तरह से नहीं आया ।
1989