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इसी तरह का मैं / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
उन दिनों,
जब मैं, मैं नहीं था
कोई और था
और
कोई और होने की तरफ़ लगातार बढ़ रहा था
तब भी
मेरा नाम वही था, जो आज है
उन दिनों की याद दिलाते हुए
लोग पूछते हैं
तब तो आप ऐसा कहते थे
ऐसा करते थे
अब तो आप ऐसा नहीं कहते
ऐसा नहीं करते
आप पहले सही थे
या अब हैं ?
हमें तो पहले सही लगते थे
तो मैं जवाब देता हूँ
शायद आप सही कह रहे होंगे
और एकान्त में जाकर रोता हूँ
पूछता हूँ ख़ुद से
कि क्या मैं उसी तरह का
मैं बनने चला था ?