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इसी नुक़्ते पे दिल को लाना है / कृश्न कुमार 'तूर'

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इसी नुक़्ते पे दिल को लाना है
कौन दुनिया में आ के ठहरा है

कैसे रिश्ता ज़मीं से टूटेगा
मेरी मिट्टी मेरा हवाला है

है ज़मीं सारी आसपास सफ़ेद
वो भी क्या आँख मोती रोया है

उसने शायद किया है याद मुझे
मेरे चारों तरफ़ उजाला है

एक चुप की बाज़ गश्त सही
घर से बाहर कोई तो आया है

बट रहा हूँ मैं दुश्मनों के बीच
मेरे हाथों में क्या नविश्ता है

उसकी नख़्वत ही ‘तूर’ ऐसी थी
मैंने पूछा नहीं वो कैसा है