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इसी भीड़ में खोजता हूँ / अज्ञेय
Kavita Kosh से
इस भीड़ में व्याकुल भाव से खोजता हूँ उन्हें
मेरे माता-पिता, मेरे परिवार-जन,
मेरे बच्चे मेरे बच्चों की माँ।
एक एक चेहरे में झाँकता हूँ मैं
और देखता हूँ
केवल आँखों के कोटरों में भरा हुआ दुःख
बेकली, तड़पन, छटपटाती खोज
खोजता हूँ अपनों को : पाता हूँ
अपने ही प्रतिरूप।
जब तक नहीं पा लूँगा अपने से इतर अपने को
कैसे होगी मुझे अपनी भी पहचान?