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इसी भुलावे में / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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छल-कपट की
जंजीरों से बँधे हुए
नाच रहे
नर-वानर गली-गली ।
मन पर ओढ़े
गहरे काले कम्बल
बाँच रहे
काले आखर, गली-गली ।
सभी देवता
सजा लिये हैं
ताकों पर
बाँधी गांधारी ने
पट्टी आँखों पर
नहीं किसी
सूरज का डर, गली-गली ।
होँठों पर
मधु की सरिताएँ,
झरने हैं,
इसी भुलावे-
में विष-सागर
तरने हैं,
रोज डँसेंगे
ये विषधर, गली-गली ।
-0-(8/10/91-तारिका दिसम्बर-93)