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इसी से मैंने कुछ सोचा नहीं / रामश्याम 'हसीन'

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इसी से मैंने कुछ सोचा नहीं है
कि जो सोचो कभी होता नहीं है

मिला करता हूँ मिलने को सभी से
सभी से तो मगर रिश्ता नहीं है

भला कैसे करूँ मिलने का वादा
वहाँ जाकर कोई लौटा नहीं है

गाँवाया जिसने, पाया भी उसी ने
गँवाए बिन कोई पाता नहीं है

किसी बाज़ार में चाहे चलाओ
खरा सिक्का है दिल, खोटा नहीं है