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इसे मत छेड़ पसर जाएगी / हरीश भादानी

इसे मत छेड़ पसर जाएगी
रेत है रेत बिफर जाएगी


कुछ नहीं प्यास का समंदर है,
जिन्दगी पाँव-पाँव जाएगी


धूप उफने है इस कलेजे पर
हाथ मत डाल ये जलाएगी


इसने निगले हैं कई लस्कर
ये कई और निगल जाएगी


न छलावे दिखा तू पानी के
जमीं-आकाश तोड़ लाएगी,


उठी गाँवों से ये ख़म खाकर
एक आँधी सी शहर जाएगी


आँख की किरकिरी नहीं है ये
झाँकलो झील नजर आएगी


सुबह बीजी है लड़के मौसम से
सींच कर साँस दिन उगाएगी


काँच अब क्या हरीश मांजे है
रोशनी रेत में नहाएगी


इसे मत छेड़ पसर जाएगी
रेत है रेत बिफर जाएगी