भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इसै फिकर मैं खाणा पीणा जहर होग्या रै / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मित्र प्यारा मौलवी का गैर होग्या रै
इसै फिकर मैं खाणा पीणा जहर होग्या रै।टेक

तड़कै हे मेरे लाल नै वो काजी पेश कर देगा
एक छोटी सी बात का बड़ा भारी केश कर देगा
आज तलक देख्या ना सुणा ईसा कलेश कर देगा
हिन्दुआं से खाली सारा शहर देश कर देगा
दरिया मैं रहकै मगरमच्छ तै बैर होग्या रै।

सब काजी की कहैं म्हारी एक वोट भी कोन्या
लिया पकड़ हकीकत राम की सूं खोट भी कोन्या
बेटे केसी दुनियां कै म्हां कोए चोट भी कोन्या
कित उड़ज्यां कित लुहकज्यां कितै ओट भी कोन्या
महाप्रलय और जुल्म सितम किसा कहर होग्या रै।

जिन्दगी भर ना लिकड़ै ईसा जाल बतावै सै
हकीकत के लिए मौत और काल बतावै सै
एक तरफ सै लोट सबकी ढाल बतावै सै
सजा दें जरूरी हो ना कती टाल बतावै सै
म्हारा कोण हिमाती साथी उनका शहर होग्या रै।

दर्द भरा दिल हंसण का के उसाण आवै सै
उबल उबल दिल हांडी की ज्यूं उफाण आवै सै
जिस तै कहूं वो हे पाड़ कै खाण आवै सै
भय का भूत मेहर सिंह मनै डराण आवै सै
इस घर में शमशान जंगल डहर होग्या रै।