भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस अहद के इन्साँ मे वफ़ा ढूँढ रहे हैं / राजेश रेड्डी
Kavita Kosh से
इस अहद के इन्साँ मे वफ़ा ढूँढ रहे हैं
हम ज़हर की शीशी मे दवा ढूँढ रहे हैं
दुनिया को समझ लेने की कोशिश में लगे हम
उलझे हुए धागों का सिरा ढूँढ रहे हैं
पूजा में, नमाज़ों में, अज़ानों में, भजन में
ये लोग कहाँ अपना ख़ुदा ढूँढ रहे हैं
पहले तो ज़माने में कहीं खो दिया ख़ुद् को
आईने में अब अपना पता ढूँढ रहे हैं
ईमाँ की तिजारत के लिए इन दिनों हम भी
बाज़ार में अच्छी-सी जगह ढूँढ रहे हैं