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इस अहद के इन्साँ मे वफ़ा ढूँढ रहे हैं / राजेश रेड्डी

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इस अहद के इन्साँ मे वफ़ा ढूँढ रहे हैं
हम ज़हर की शीशी मे दवा ढूँढ रहे हैं

दुनिया को समझ लेने की कोशिश में लगे हम
उलझे हुए धागों का सिरा ढूँढ रहे हैं

पूजा में, नमाज़ों में, अज़ानों में, भजन में
ये लोग कहाँ अपना ख़ुदा ढूँढ रहे हैं

पहले तो ज़माने में कहीं खो दिया ख़ुद् को
आईने में अब अपना पता ढूँढ रहे हैं

ईमाँ की तिजारत के लिए इन दिनों हम भी
बाज़ार में अच्छी-सी जगह ढूँढ रहे हैं