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इस आशा में जीवित हम शायद मौसम बदले / अमन चाँदपुरी
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इस आशा में जीवित हम शायद मौसम बदले
अभी अमावस-सा अँधियारा जीवन में छाया
नींद दृगों से छीन हमें दुनिया ने भरमाया
आशा-गठरी लिए कदाचित सूरज अब निकले
ग़ैर हो गए हैं अपने ही अब जीवन पथ में
फँसा हुआ हूँ कर्ण-सदृश जीवन-रण के रथ में
वचन टूटते मेरा उन पर कोई वश न चले
पल-पल छलते यहाँ सगे जब किसे कहें अपना
द्वेष-कपट-छल सच्चाई है, प्रेम हुआ सपना
पल भर में सदियों का किस्सा कह आँसू फिसले
नहीं सुखों की छाँव कहीं हैं, दुख की राहें हैं
क़दम-क़दम पर मजबूरी की मिलती आहें हैं
ऐसे दावानल में कोई कब तक भला जले