भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस उदासी के लिए नाम बताओ कोई / सुरेश सलिल
Kavita Kosh से
इस उदासी के लिए नाम बताओ कोई
क्यूँ घिरी रहती सुबहो शाम, बताओ कोई
रात भर कोह से तेशे से गुफ़़्तगू, फिर भी
क्यूँ फ़रामोशिए गुलफाम, बताओ कोई
नीन्द क्यूँ दूर शब ब खैर से छिटकी रहती
कौन डस जाता सरे शाम, बताओ कोई
इक नई दुनिया की तामीर की वो जद्दोजहद
फिर भी क्यूँ ज़िन्दगी नाकाम, बताओ कोई
सरफ़रोशी से इंक़लाब का आग़ाज़ हुआ
करता उस आग़ाज़ का अंजाम, बताओ कोई