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इस एक ज़ौम में जलते हैं ताबदार चराग़ / बुनियाद हुसैन ज़हीन
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इस एक ज़ौम में जलते हैं ताबदार चराग़
हवा के होश उड़ाएँगे बार - बार चराग़
जो तेरी याद में मैंने जला के रक्खे हैं
तमाम रात करे हैं वो बेक़रार चराग़
ख़मोश रह के सिखाते हैं वो हमें जीना
जो जल के रोशनी देते हैं बेशुमार चराग़
हर एक दौरे-सितम के हैं चश्मदीद गवाह
इसी लिए तो हैं दुनिया से शर्मसार चराग़
ज़माने भर में हमीं से है रोशनी का वजूद
उठा के सर ये कहेंगे हज़ार बार चराग़
तुम्हारे चेहरे कि ताबिंदगी के बाइस ही
मेरी निगाह में रोशन हैं बेशुमार चराग़
इन्हें हक़ीर समझने कि भूल मत करना
हवा के दोश पे हो जाते हैं सवार चराग़
बुझा सके न जिन्हें तेज़ आंधियां भी 'ज़हीन'
वही तो होते हैं दरअस्ल जानदार चराग़