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इस खतरनाक समय में / गुलज़ार हुसैन
Kavita Kosh से
यह कितना खतरनाक समय है
कि कोई किसान यदि खेत में टिड्डियों के दल को पत्थर फेंक कर भगाना चाहता है
तो कुछ लोग डर कर
अपने-अपने घरों में दुबक जाते हैं
कि कहीं किसी रंगरेज के इलाके में
सड़क के किनारे
कपड़ा रंगने वाले लाल गाढ़े रंग को पसरा देख
स्कूल जाते बच्चे घबराकर घर लौट जाते हैं
क्या यह समय सचमुच
डर-डर कर जीने का है?
क्या यह समय
कांटे को फूल
और चाकू को कलम कह कर
जिन्दा बचे रहने का है ?
यह कितना खतरनाक समय है
कि कोई अनजाना व्यक्ति
एक शब्द कहता है- 'हत्यारा'
और वहाँ खड़े सब लोग यह जान जाते हैं
कि किसके बारे में यह कहा गया है
लेकिन फिर भी
यह समय
सिर झुकाकर चल रहे लोगों के बीच से
आँखे चुरा कर निकल जाने का हरगिज़ नहीं है