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इस ज़िन्दगी को यदि पुन: / महेन्द्र भटनागर
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इस ज़िंदगी को
यदि पुनः जीया जा सके —
तो शायद
सुखद अनुभूतियों के फूल खिल जाएँ!
हृदय को
राग के उपहार मिल जाएँ!
आत्मा में मनोरम कामनाओं की
सुहानी गंध बस जाए
दूर कर अंतर / परायापन
कि सब हो एकरस जाएँ!
किंतु क्या संभव पृथक होना
अतीत-व्यतीत से,
इतिहास के अभिलेख से,
पूर्व-अंकित रेख से?