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इस तरह मुझको देखती हो क्या? / विष्णु सक्सेना
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इस तरह मुझको देखती हो क्या?
मेरी आँखों की रौशनी हो क्या?
मैं वही एक जलता सूरज हूँ
तुम वही धूप गुनगुनी हो क्या?
फूल की खुशबुओं में लिपटी, तुम
खूबसूरत-सी शायरी हो क्या?
मैंने हर पल जिसे तलाशा है,
शायरी की वह डायरी हो क्या?
जिस्म से जान रूठ कर पूछे,
तुम भी मेरी तरह दुखी हो क्या?
जब भी देखा है हंसते देखा है,
तुम भी बच्चों-सी रूठती हो क्या?
ज़िद तुम्हारी मुझे हंसाती है
मेरी बेटी-सी लाड़ली हो क्या?