भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस दिन / बेई दाओ
Kavita Kosh से
|
हवा जानती है कि प्रेम क्या है
गर्मियों का यह दिन कौंधा रहा है शाही रंग
एक अकेला मछुआरा तमाम दुनिया के घावों का
जायज़ा लेता है
बजी हुई एक घंटी अपनी तरंगों से फूलती है
लोग दुपहरी में तफ़रीह कर रहे हैं
आइए, इस वर्ष के निहितार्थों में शामिल हो जाएं
कोई झुकता है एक पियानो की ओर
कोई एक सीढ़ी ढोता चला जाता है
कुछ मिनटों के लिए उनींदरे को स्थगित कर दिया गया है
कुछ मिनटों के लिए ही महज़
सूर्य शोध करता है परछाइयों का
और चमकदार शीशे से पानी पीते हुए
मैं भीतर के दुश्मन को देखता हूं
तेल का एक टैंकर
ऊंचे स्वर के एक गीत से खीझ उठता है समुद्र
भोर के तीन बजे मैं टिन का डिब्बा खोलता हूं
कुछ मछलियों को आग पर रखता हूं
अंग्रेजी भाषा से रूपांतरण : गीत चतुर्वेदी