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इस दुःख के बहाने / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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न प्रश्न, न उत्तर
न पाप, न पुण्य
न जीवन, न मृत्यु
हर प्रश्न का उत्तर नहीं होता;
पाप-पुण्य दोनों
बदलते परिभाषाएँ,
इन्हें पकड़कर
हम कहीं न पहुँच पाए
कभी प्रश्न करो या
मुझसे कहो कि
तुमसे कुछ माँगूँ;
मैं माँगूँगा सिर्फ़ तुमको
तुमसे,
मैं माँगूँगा केवल तुम्हारा दुःख
तुमसे,
सुख कब आए, कब जाए
क्या भरोसा;
तुम्हारे दुःख लेकर मैं
सात समंदर पार जाऊँगा;
ताकि वे तुम्हें न रुलाएँ,
रोज़-रोज़ तुम्हारे पास न आएँ।
मैं दुःख से बोझिल
तुम्हारा माथा
चूमना चाहता हूँ,
तुम्हारी पीड़ा को
अपने सीने में
 दफ़्न करना चाहता हूँ;
ताकि जब तुम दूर चली जाओ
इस दुःख के बहाने
तुमको महसूस करूँ,
जी न पाया तुम्हारे लिए
कम से कम तेरे लिए मरूँ,
सौ -सौ जन्म धरूँ,
तुमको सीने से नहीं लगा सका
दु:ख को सीने से लगाऊँ,
इस दु:ख में
चातक-सा तुमको पुकारूँ,
और अन्तिम बूँद की आस में
प्यास से मर जाऊँ,
हो मेरा पुनर्जन्म
तुम्हें पा जाऊँ।

(18-02-20121)