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इस दुनिया में क्षितिज से बहुत दूर / विवेक तिवारी


इस दुनिया में
क्षितिज से बहुत दूर
बसे किसी महानगर में
तुम्हारा सहजता,सौम्यता
और सादगी से
किसी रूह में प्रवेश कर जाना
कोई सपना नहीं
किसी सपनें के
पार देखने जैसा है

और फिर
उन सपनों के पार
दरख़्तों की छायाओं में
खूबसूरती का दीया जलाकर
चमकते लम्हों
गहरे जज़्बातों
और दिल में उमड़ते
ज्वारों के साथ
उन रास्तों पर मंडराती
खुशबू बिखेरती
गुजरती
एक उम्र
वहाँ तक
चली जाती है
जहाँ
आज भी
जमा होते मिलते हैं
तुम्हारी हंसी के
खूबसूरत निशान...।