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इस दौर में ईमान जिस के पास होता है /वीरेन्द्र खरे अकेला
Kavita Kosh से
इस दौर में ईमान जिसके पास होता है
देखा गया है उसका ही उपहास होता है
कुछ भी नहीं है आज खाने के लिए तो क्या
सेहत की ख़ातिर लाज़मी उपवास होता है
कोई भले ही ऐ ख़ुदा समझे वहम तुझको
मुझको मुसीबत में तेरा आभास होता है
दशरथ विवश होते हैं जब कैकेई के सम्मुख
हर हाल में तब राम का वनवास होता है
कुछ पंक्तियाँ पढ़ के ही यारो हमने ये जाना
जीवन की कविता में तो दुख अनुप्रास होता है
अब क्या करें, क्या जान दे दें, आप ही कहिए
हम पर न कैसे भी उन्हें विश्वास होता है
महफ़िल में उसको दाद यूँ ही तो नहीं मिलती
कुछ तो ‘अकेला’ की ग़ज़ल में ख़ास होता है