इस दौर में गुमनाम है हर सोचने वाला / रवि सिन्हा
इस दौर में गुमनाम है हर सोचने वाला
इस मुल्क में नाकाम है हर सोचने वाला
शाबाश कि दौड़े हो भले दौड़ है अन्धी
याँ ख़ूगर-ए-दुश्नाम<ref>गाली खाने का आदी (accustomed to abuse)</ref> है हर सोचने वाला
जम्हूर<ref>जनता (people)</ref> ने क्या सोच के मुन्सिफ़ ये बिठाए
अब मोरिद-ए-इल्ज़ाम<ref>दोषी ठहराए जाने लायक़ (likely to be accused)</ref> है हर सोचने वाला
इस क़ौम की तारीख़ में मज़हब न तलाशो
याँ पैकर-ए-औहाम<ref>अन्धविश्वास की मूर्त्ति (superstitions personified)</ref> है हर सोचने वाला
तहरीक<ref>गति, आन्दोलन (movement)</ref> ही क़ानून है तहरीक ही मक़्सूद<ref>वांछित, उद्देश्य (desired, goal)</ref>
इबहाम<ref>भ्रान्ति, अस्पष्टता ( ambiguity, confusion)</ref> का गोदाम है हर सोचने वाला
उम्मीद-ए-सुकूँ किसको है अरबाब-ए-ख़िरद<ref>बुद्धिमान, बुद्धिवादी (men of intellect)</ref> से
ख़ल्वत<ref>एकान्त (solitude)</ref> में भी कोहराम है हर सोचने वाला
मिट्टी में तसव्वुर<ref>कल्पना (imagination)</ref> का हुनर डाल के देखो
किस सोच का अंजाम है हर सोचने वाला