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इस धरा को मातृपद का मान देने के लिये / रंजना वर्मा
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इस धरा को मातृपद का मान देने के लिये।
धर हथेली पर चलें निज प्रान देने के लिये॥
दें कनिष्ठों को सदा उपहार अपने प्यार का
सिर झुकायें बड़ों को सम्मान देने के लिये॥
मार कर ठोकर जगाओ तुम न सोये सिंह को
हो गये तैयार तुम क्या जान देने के लिये॥
उठ चुके हैं पाँव अब रोके न कोई रास्ता
वक्ष तत्पर सिंधु का अभियान देने के लिये॥
अल्प जीवन के लिये ये दुख नहीं करते कभी
हैं सुमन संलग्न नित मुस्कान देने के लिये॥
व्यर्थ के आडम्बरों से मोड़ मुख आगे बढ़ो
देश को इस नित नयी पहचान देने के लिये॥
नित्य करते ही रहो अध्यात्म अनुशीलन सदा
आत्म की उपलब्धि को उत्थान देने के लिये॥